अमर सिंह (1859) बिहार के जगदीशपुर के वीर शासक और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबू कुंवर सिंह के छोटे भाई थे। उन्होंने अपने बड़े भाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध अदम्य साहस दिखाया और देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अमर सिंह का जन्म भोजपुर (जगदीशपुर) के राजपरिवार में हुआ। वे स्वभाव से ही साहसी, निर्भीक और योद्धा प्रवृत्ति के थे। अपने बड़े भाई कुंवर सिंह के साथ उन्होंने शस्त्र और युद्धकला की शिक्षा प्राप्त की। दोनों भाइयों में गहरा स्नेह और देशभक्ति की एक समान भावना थी।
जब 1857 का विद्रोह आरंभ हुआ, तब अमर सिंह ने कुंवर सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों का मुकाबला किया। वे कुंवर सिंह के विश्वस्त सहयोगी और सेनापति के रूप में कार्य करते थे। कुंवर सिंह की मृत्यु (26 अप्रैल 1858) के बाद अमर सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व संभाला और अंग्रेजों को चुनौती देते रहे।
अमर सिंह ने अपने भाई की तरह गुरिल्ला युद्ध की नीति अपनाई। वे बिहार से लेकर झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक घूम-घूमकर अंग्रेजों से लड़े। उनके साथ सैकड़ों क्रांतिकारी सैनिक जुड़े और उन्होंने कई बार अंग्रेजी सेना को मात दी। उन्होंने जंगलों और पहाड़ियों में छिपकर अंग्रेजों पर अचानक हमले किए, जिससे अंग्रेज बहुत परेशान हुए।
लगातार संघर्ष करते हुए अमर सिंह 1859 तक सक्रिय रहे। अंग्रेज उनकी वीरता और योजनाओं से भयभीत थे। अंततः लंबी लड़ाई और थकान के बाद वे पकड़े गए और वीरगति को प्राप्त हुए। उनका बलिदान इतिहास के पन्नों में कुंवर सिंह की ही तरह अमर हो गया।
अमर सिंह की गाथा हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता की लौ एक बार जल जाए तो वह किसी भी कठिनाई से नहीं बुझती।
वे केवल कुंवर सिंह के भाई नहीं, बल्कि स्वयं स्वतंत्रता के अमर सेनानी थे।
उनका संघर्ष और बलिदान भारत की आज़ादी की नींव का हिस्सा है।
✨ "स्वतंत्रता के लिए जीवन अर्पण करना ही सबसे बड़ा धर्म है – यही अमर सिंह का अमर संदेश है।" ✨
यह संदेश हर वेदांती के हृदय में सदैव अंकित रहना चाहिए।