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भारत पुत्र: बप्पा रावल

बप्पा रावल

राजस्थान का मेवाड़, जो अपनी वीरता और शौर्य के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, बप्पा रावल के नेतृत्व और पराक्रम का परिणाम था। मेवाड़ के नाम आते ही वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का छायाचित्र सामने आता है, लेकिन इसकी स्थापना करने वाले महान योद्धा बप्पा रावल ही थे, जिन्होंने अफगानिस्तान तक अपना साम्राज्य फैलाया।

बप्पा रावल का आरंभिक जीवन और मेवाड़ की स्थापना

बप्पा रावल को मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। डॉ. ओझा के अनुसार, 'बप्पा रावल' किसी व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि कालभोज नामक शासक की उपाधि थी। मुहणौत नैणसी की ख्यात के अनुसार वे ऋषि हारीत राशि की गायें चराते थे। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर हारीत राशि ने महादेव से मेवाड़ का राज्य मांग लिया।

वीरता और अफगानिस्तान तक विजय

बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ के शासक राजा मान मोरी की सेवा में रहते हुए विदेशी मुग़ल आक्रमणकारियों का सामना किया। जब सामंतों ने युद्ध से इंकार किया, तब बप्पा रावल ने चुनौती स्वीकार की। उनके अद्भुत पराक्रम से आक्रमणकारी सिंध की ओर भाग गए। शत्रुओं का पीछा करते हुए बप्पा रावल गजनी तक पहुंचे, वहां के शासक सलीम को पराजित किया और अपने भानजे को सिंहासन पर बैठाया। उन्होंने सलीम की बेटी से विवाह कर चित्तौड़गढ़ लौट आए।

चित्तौड़गढ़ पर शासन और विजय

734 ई. में चित्तौड़गढ़ पर शासन करने के लिए बप्पा रावल को सामंतों ने आमंत्रित किया। उन्होंने चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर तीन उपाधियां धारण की – 'हिंदू सूर्य', 'राजगुरु' और 'चक्कवै'। पचास वर्ष की आयु में उन्होंने ईरान के खुरासान पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। इतिहासकारों के अनुसार, उनका देहांत नागदा में हुआ और समाधि स्थल 'बप्पा रावल' के नाम से प्रसिद्ध है।

सिक्के, सैन्य श्रेष्ठता और वैश्विक पराक्रम

बप्पा रावल ने अपने पूर्वजों की तरह सोने के सिक्के प्रचलित किए, जिन पर कामधेनु, बछड़ा, शिवलिंग, नंदी, दंडवत करता पुरुष, नदी, मछली और त्रिशुल अंकित थे। इतिहासकार सी. वी. वैद्य ने उनकी वीरता की तुलना फ्रांसीसी सेनापति चार्ल्स मार्टल से की। उन्होंने इस्फन हान, कंधार, कश्मीर, इराक, ईरान, तूरान और काफरिस्तान के शासकों को पराजित किया और उनकी पुत्रियों से विवाह किया। उनके सैन्य ठिकानों के कारण पाकिस्तान का शहर रावलपिंडी उनके नाम पर प्रसिद्ध हुआ।

महानता और विरासत

बप्पा रावल की वीरगाथा आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवित है। वे सच्चे अर्थों में "भारत पुत्र" और "धर्मवीर" माने जाते हैं। हे वेदांतियों, नमन करो अपने इस महान पूर्वज को और याद रखो उनके साहस, वीरता और बलिदान को, जो मेवाड़ और भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा।