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भारत पुत्र: सम्राट हर्षवर्धन

सम्राट हर्षवर्धन

सम्राट हर्षवर्धन (606–647 ईस्वी) भारत के महान सम्राटों में से एक थे। वे पुष्यभूति वंश के शासक थे और अपनी वीरता, धर्मपरायणता और साहित्यप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। सम्राट हर्षवर्धन ने अपने साम्राज्य को न केवल शक्ति और प्रशासन से मजबूत किया, बल्कि संस्कृति, शिक्षा और धर्म को भी नई ऊँचाइयाँ दीं। उनका शासनकाल उत्तर भारत के लिए शांति, समृद्धि और सांस्कृतिक उत्कर्ष का युग माना जाता है।

शासन और प्रशासन

सम्राट हर्षवर्धन ने थानेसर और कन्नौज को मिलाकर अपनी राजधानी कन्नौज बनाई। उनका प्रशासन संगठित, न्यायप्रिय और प्रजावत्सल था। उन्होंने कर व्यवस्था, सेना और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से राज्य को मजबूत बनाया। हर्ष के शासनकाल में प्रजा को सुरक्षा, न्याय और विकास का अनुभव हुआ।

वीरता और युद्ध कौशल

सम्राट हर्षवर्धन एक पराक्रमी योद्धा और रणनीतिकार थे। उन्होंने उत्तर भारत के अनेक राज्यों को संगठित कर अपने साम्राज्य को विस्तृत किया। दक्षिण में विस्तार करते समय उनका सामना चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय से हुआ, जिसने उन्हें नर्मदा नदी पर रोक दिया। इसके बावजूद, उत्तर भारत में वे एकमात्र महान सम्राट के रूप में स्थापित हुए।

धर्म और संस्कृति का संरक्षक

सम्राट हर्षवर्धन प्रारंभ में शैव धर्म के अनुयायी थे, किंतु बाद में बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर उसके महान संरक्षक बने। उन्होंने बौद्ध महायान परंपरा को संरक्षण दिया और हर पाँच वर्ष में विशाल धार्मिक सभाएँ आयोजित कीं। उनके दरबार में विद्वानों, कवियों और कलाकारों को सम्मान मिला। हर्ष स्वयं भी महान लेखक थे और उन्होंने रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानंद जैसे नाटक लिखे।

सम्राट हर्षवर्धन की धर्मनिष्ठा, साहित्यप्रेम और न्यायप्रियता आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।वे सच्चे अर्थों में "भारत पुत्र" और "धर्मवीर" थे। हे वेदांतियों, अपने इस महान पूर्वज से प्रेरणा लो और अपने जीवन में धर्म, ज्ञान और संस्कृति की राह अपनाओ। याद रखो कि सच्चा नेतृत्व वही है, जो समाज को एकजुट करे और आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श स्थापित करे, और सम्राट हर्षवर्धन ने यह उदाहरण हमें दिया है। उनका योगदान और प्रेरणा भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगी।