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🚩माँ झलकारी बाई 🚩

माँ झलकारी बाई

परिचय

वीरांगना माँ झलकारी बाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनुपम शूरवीर महिला थीं। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की सेना में रहते हुए अपनी असाधारण वीरता, बुद्धिमानी और बलिदान से अंग्रेज़ों को मात दी। उनकी गाथा नारी शक्ति, देशभक्ति और साहस की जीवंत मिसाल है।

कौन थीं माँ झलकारी बाई?

माँ झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झाँसी के भोजला गाँव में हुआ था। उनके पिता सदोवर सिंह एक साधारण किसान थे। बचपन से ही माँ झलकारी बाई में अद्भुत साहस था। उन्होंने घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और धनुष-बाण चलाना सीखा। कहा जाता है कि उन्होंने अकेले शेर का सामना कर उसे मार गिराया था।

झाँसी की सेना में प्रवेश

माँ झलकारी बाई का विवाह पवन सिंह नामक सैनिक से हुआ। विवाह के बाद वे झाँसी आईं और अपनी वीरता व पराक्रम से रानी लक्ष्मीबाई की सेना में शामिल हो गईं। रानी से उनका रूप-रंग इतना मिलता था कि उन्हें अक्सर रानी की परछाईं कहा जाता था। बाद में उन्हें दुर्गा दल (महिला सेना) की प्रमुख नियुक्त किया गया।

1857 का संग्राम

1857 में जब झाँसी अंग्रेजों से घिर गई, तब रानी लक्ष्मीबाई को किले से सुरक्षित निकालने की योजना बनी। माँ झलकारी बाई ने रानी का रूप धारण कर मोर्चे पर डटकर अंग्रेजों का सामना किया। अंग्रेजों ने उन्हें असली रानी समझकर अपनी सेना का ध्यान उनकी ओर केंद्रित कर दिया। इस बीच रानी सुरक्षित बाहर निकल गईं और अन्य क्रांतिकारियों से जा मिलीं।

बलिदान और साहस

माँ झलकारी बाई ने अपनी जान की परवाह न करते हुए रानी लक्ष्मीबाई और क्रांतिकारी आंदोलन को बचा लिया। कुछ कथाओं के अनुसार, अंग्रेजों ने उन्हें पकड़कर फाँसी पर चढ़ा दिया, जबकि अन्य मान्यताओं में कहा जाता है कि वे बचकर बाद में सामान्य जीवन जीती रहीं। लेकिन निस्संदेह, उनका साहस और बलिदान इतिहास में अमर है।

इतिहास में स्थान

माँ झलकारी बाई का नाम अक्सर रानी लक्ष्मीबाई की परछाईं के रूप में लिया जाता है। दुर्भाग्यवश, मुख्यधारा के इतिहास में उन्हें उतना स्थान नहीं दिया गया जितना वे заслужित करती थीं। लेकिन जनमानस की स्मृति और लोककथाओं में वे आज भी एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जीवित हैं।

हमें क्या सिखाती हैं?

माँ झलकारी बाई हमें सिखाती हैं कि सच्ची देशभक्ति जाति, लिंग और पद से परे होती है। जब मातृभूमि पर संकट हो, तो हर व्यक्ति अपनी भूमिका निभा सकता है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि महिलाएँ केवल घर-गृहस्थी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रणभूमि में भी अदम्य साहस दिखा सकती हैं।

✨ "वीरांगना माँ झलकारी बाई, आपके अदम्य साहस, बलिदान और देशभक्ति को शत्-शत् नमन।"

आपका नाम सदैव इतिहास के पन्नों और सनातनी वेदान्तियों के हृदयों में अमर रहेगा। ✨