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भारत पुत्र: लचित बोरफुकन

योगी आदित्यनाथ

लचित बोरफुकन (जन्म 24 नवम्बर 1622 – निधन 25 अप्रैल 1672) अहोम साम्राज्य के एक महान सेनापति और असम के राष्ट्रीय नायक थे। उन्हें उनकी वीरता, राष्ट्रप्रेम और रणनीतिक कौशल के कारण “असम का शिवाजी” तथा “उत्तर-पूर्व का चाणक्य” कहा जाता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

लचित बोरफुकन का जन्म असम के गढ़गाँव में हुआ था। वे अहोम साम्राज्य के महत्वपूर्ण मंत्री मोमाई तामुली बर्बरुआ के पुत्र थे। बचपन से ही उनमें राष्ट्रभक्ति और सैन्य कौशल की झलक दिखाई देती थी। उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने कौशल को और निखारा।

सैन्य करियर

लचित को अहोम साम्राज्य में “बोरफुकन” की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ होता है सेनापति। उनका सबसे प्रसिद्ध पराक्रम 1671 में **सरायघाट की लड़ाई** में देखने को मिला, जब उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की विशाल सेना को ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्णायक रूप से पराजित किया। यह युद्ध असम और पूरे उत्तर-पूर्व के इतिहास में स्वतंत्रता की अमर गाथा के रूप में दर्ज है।

रणनीति और नेतृत्व

लचित बोरफुकन केवल वीर योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल रणनीतिकार भी थे। उन्होंने असम की भौगोलिक परिस्थितियों का लाभ उठाकर मुगलों को पराजित किया। कहा जाता है कि वे राष्ट्रहित के लिए अपने सगे-सम्बंधियों पर भी कठोर दंड देने से पीछे नहीं हटते थे। उनके नेतृत्व ने असम को मुगलों से मुक्त रखा और स्वतंत्रता की ज्योति जलाए रखी।

विरासत और प्रेरणा

लचित बोरफुकन का जीवन बलिदान, अनुशासन और अटूट राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है। आज भी उनकी स्मृति में हर साल **लचित दिवस** मनाया जाता है और गुवाहाटी स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में सर्वश्रेष्ठ कैडेट को “लचित बोरफुकन स्वर्ण पदक” प्रदान किया जाता है। वे असम ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

⚔️ लचित बोरफुकन का जीवन इस सत्य को उजागर करता है कि राष्ट्र ही परम धर्म है, और उसकी रक्षा ही सबसे बड़ी साधना। ⚔️ 🔥 "देश पहले – सबकुछ बाद में, यही लचित बोरफुकन की अमर पुकार है।" 🔥 उनकी वीरता हमें यह चेतावनी देती है कि जो राष्ट्र के लिए नहीं जीता, उसका जीवन व्यर्थ है। हर वेदान्ती के भीतर वही ज्वाला जलनी चाहिए – साहस, राष्ट्रभक्ति और अदम्य कर्तव्यनिष्ठा। 🚩 लचित बोरफुकन केवल इतिहास नहीं, वे आज भी चेतावनी और प्रेरणा हैं। 🚩