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माँ अहिल्याबाई होल्कर

माँ अहिल्याबाई होल्कर

माँ अहिल्याबाई होल्कर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795) मालवा की लोकमाता, धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय शासिका थीं। वे करुणा, प्रशासन-कुशलता और अटूट आस्था की जीवंत प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। बाल्यकाल से ही वे अध्ययन-ध्यान, साधु-सेवा और लोक-कल्याण के संस्कारों से ओत-प्रोत रहीं। मल्हारराव एवं खंडेराव होल्कर के पश्चात उन्होंने दृढ़ निश्चय और धैर्य से शासन की बागडोर संभाली।

शासन और प्रशासन

1767 से 1795 तक अहिल्याबाई ने इंदौर राज्य का संचालन सरल, पारदर्शी और प्रजावत्सल नीति से किया। उन्होंने न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ किया, कर प्रणाली को संतुलित बनाया, सिंचाई, सड़कों, सरायों और नयी बसाहटों से व्यापार एवं कृषि को बढ़ावा दिया। वे प्रजा को परिवार मानकर प्रत्येक संकट में सहायक बनीं; विधवाओं, कृषकों और व्यापारियों का विशेष संरक्षण किया।

धर्म व संस्कृति का संरक्षण

माँ अहिल्या ने संपूर्ण भारत में मंदिरों, घाटों, धर्मशालाओं और तीर्थ-मार्गों का पुनर्निर्माण कराया। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का जीर्णोद्धार, सोमनाथ, द्वारका, गया, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, उज्जैन आदि तीर्थों का अलंकरण—उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण है। वे वैर-भाव से ऊपर उठकर धर्म का सार—सेवा, सदाचार और लोककल्याण—को प्रतिष्ठित करती रहीं।

न्याय, करुणा और लोककल्याण

माँ अहिल्याबाई न्याय के साथ करुणा का समन्वय करती थीं—निर्बलों की रक्षा और दोषियों को दण्ड, दोनों में वे निष्पक्ष रहीं। अकाल-आपदा में अन्न भंडार खोलना, धर्मशालाएँ एवं अन्नक्षेत्र चलाना, गौ-रक्षा और विद्या-वितरण—ये सभी उनके दैनंदिन राजधर्म का अंग थे। उनकी राज-सभा विद्वानों, कलाकारों और संत-महात्माओं से सुशोभित रहती थी।

महानता और विरासत

माँ अहिल्याबाई ने सिद्ध किया कि आदर्श शासन केवल शक्ति से नहीं, सेवा, साधना और सत्य से चलता है। उनका व्यक्तित्व भारतीय नारी-शक्ति, सुशासन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अमर प्रतीक है। “लोकमाता” के रूप में उनकी स्मृति आज भी इंदौर-मालवा से लेकर काशी के गलियारों तक आशीर्वाद की तरह बसती है।

माँ अहिल्याबाई की दिव्य विरासत हमें सिखाती है कि सत्ता का सर्वोच्च स्वरूप सेवा है, और धर्म का सार लोककल्याण। वेदांतियों, अपने जीवन में न्याय, करुणा और साधना के मार्ग का अनुसरण करो—जैसे माँ अहिल्या ने किया। याद रखो: “जो स्वयं तप करता है, वही युगों तक प्रकाश देता है; और जो लोक के लिए जीता है, उसका नाम अमर हो जाता है।” चलो, उनके आदर्शों से प्रेरित होकर हम भी समाज और राष्ट्र के लिए शुभ कर्म, सत्यनिष्ठा और सेवा का व्रत लें।