माँ रानी हाड़ी (16वीं शताब्दी) राजस्थान की महान वीरांगना थीं, जिन्होंने चित्तौड़ की आन-बान और शान की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। वे चित्तौड़ की महारानी माँ रानी नहीं थीं, बल्कि राणा रतन सिंह की विधवा और शौर्य, त्याग तथा कूटनीति की अद्भुत मिसाल थीं। उनकी वीरता और बलिदान ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।
माँ रानी हाड़ी मेवाड़ के प्रतिष्ठित राजवंश से थीं। पति की मृत्यु के बाद भी वे राजपरिवार से गहराई से जुड़ी रहीं। उनका जीवन परंपरा, संस्कृति और मेवाड़ की अस्मिता के प्रति समर्पण से भरा हुआ था। उन्होंने दिखाया कि नारी शक्ति केवल गृहस्थ जीवन तक सीमित नहीं, बल्कि युद्धभूमि और कूटनीति में भी अद्वितीय योगदान दे सकती है।
जब अकबर ने 1568 में चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया, तो राणा उदय सिंह युद्ध से पहले ही सुरक्षित स्थान पर चले गए।
ऐसे कठिन समय में अकबर ने चित्तौड़ के शूरवीर जयमल राठौड़ से संदेश भिजवाया कि यदि उनकी माँ रानी महल भेज दी जाए,
तो युद्ध टल सकता है।
चित्तौड़ की आन बचाने के लिए माँ रानी हाड़ी ने असाधारण साहस दिखाया। उन्होंने यह निश्चय किया कि वे स्वयं अकबर के पास जाएँगी,
लेकिन चित्तौड़ की किसी भी स्त्री की अस्मिता पर आँच नहीं आने देंगी। वे साधारण वस्त्र धारण करके और सिर झुकाकर अकबर के दरबार में पहुँचीं।
उनकी दृढ़ता और त्याग को देखकर अकबर ने चित्तौड़ पर और अधिक अपमानजनक शर्तें थोपने का विचार छोड़ दिया।
अकबर की विशाल सेना ने चित्तौड़ को घेर लिया। हजारों राजपूत वीर रणभूमि में उतरे और युद्धभूमि में बलिदान दिया। किले के भीतर माँ रानी हाड़ी और अन्य स्त्रियों ने जौहर किया, ताकि उनकी पवित्रता पर कोई आंच न आए। इस जौहर ने मेवाड़ की अस्मिता और स्वाभिमान को सदैव के लिए अमर कर दिया।
माँ रानी हाड़ी केवल एक नारी नहीं, बल्कि त्याग, बलिदान और साहस का प्रतीक थीं। उनका नाम आज भी चित्तौड़गढ़ की शौर्यगाथा में अमर है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए नारी भी रणभूमि में किसी पुरुष से कम नहीं।
🙏 माँ रानी हाड़ी, आपके त्याग और बलिदान को शत्-शत् नमन। आपका नाम भारत के इतिहास में अमर है। हम सनातनी वेदांती आपके महान बलिदान को न भूले हैं और न कभी भूलेंगे। 🙏