माँ महारानी नायकी देवी (12वीं शताब्दी) गुजरात की सोलंकी वंश की वीरांगना थीं, जिन्होंने अदम्य साहस और रणकौशल से मोहम्मद घोरी जैसे आक्रांता को पराजित किया। वे भारत की नारी-शक्ति और स्वराज्य की रक्षा की अमर प्रतीक मानी जाती हैं। बाल्यकाल से ही वे घुड़सवारी, शस्त्र-विद्या और राजनीति में निपुण थीं।
सोलंकी शासक अजयपाल की असमय मृत्यु के बाद नायकी देवी ने अपने अल्पवयस्क पुत्र भीमदेव द्वितीय की ओर से राज्य की बागडोर संभाली। उन्होंने अदम्य साहस के साथ गुजरात के प्रशासन को संभाला और सीमाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उनके नेतृत्व में गुजरात सशक्त और संगठित बना रहा।
1178 ई. में मोहम्मद घोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया और अन्हिलवाड़ा (पाटण) की ओर बढ़ा। माँ नायकी देवी ने अपनी सेना को संगठित किया और माउंट आबू के पास कसारदा की घाटी में निर्णायक युद्ध लड़ा। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने घोरी की विशाल सेना को ध्वस्त कर दिया और उसे अपमानजनक पराजय झेलनी पड़ी। यह विजय भारत के इतिहास की महानतम उपलब्धियों में गिनी जाती है।
माँ महारानी नायकी देवी केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि राष्ट्रगौरव की सशक्त संरक्षिका थीं। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि नारी शक्ति केवल घर की मर्यादा तक सीमित नहीं, बल्कि रणभूमि में भी आक्रमणकारियों को परास्त कर सकती है। उनका जीवन साहस, राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान का शाश्वत आदर्श है।
माँ महारानी नायकी देवी की शौर्यगाथा हमें यह सिखाती है कि जब राष्ट्र पर संकट आए तो साहस और संकल्प ही सबसे बड़ा अस्त्र है। वेदांतियों, याद रखो: “विजय संख्या से नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और मातृभूमि के प्रति समर्पण से मिलती है।” चलो, उनके अमर आदर्शों को अपने जीवन में उतारकर राष्ट्र-गौरव और स्वराज्य की रक्षा का संकल्प लें।