माँ रानी अवंतीबाई लोधी (1831 – 20 मार्च 1858) मध्यप्रदेश के रामगढ़ राज्य की वीरांगना थीं। वे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रखर नायिका और मातृभूमि की रक्षा हेतु आत्मबलिदान करने वाली अमर वीरांगना के रूप में जानी जाती हैं। बचपन से ही वे तेजस्वी, साहसी और दृढ़ संकल्पवान थीं। पति राजा विक्रमादित्य लोधी की मृत्यु के बाद उन्होंने राज्य की बागडोर संभाली। मातृभूमि के प्रति उनकी निष्ठा और आत्मसम्मान उन्हें अन्याय और पराधीनता के विरुद्ध खड़ा होने के लिए प्रेरित करता रहा।
पति के निधन के पश्चात माँ रानी अवंतीबाई ने अल्पवयस्क पुत्र शेरसिंह और अमनसिंह के संरक्षक के रूप में शासन संभाला। अंग्रेजों ने राज्य को अपने नियंत्रण में लेने का षड्यंत्र रचा, लेकिन रानी ने इसे अस्वीकार कर स्वतंत्र शासन चलाया। उन्होंने किसानों और प्रजाजनों के दुःख-दर्द को समझा और प्रजा-हितकारी नीतियाँ अपनाईं। अपने न्यायप्रिय और सशक्त नेतृत्व से वे जनता के हृदय में “मातृ-स्वरूपा रानी” के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
जब 1857 का विद्रोह प्रारम्भ हुआ, तो माँ रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध शस्त्र उठाया। उन्होंने लगभग 4000 सैनिकों की सेना संग रामगढ़ किले से स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। दमोह, मंडला और आसपास के क्षेत्रों में उन्होंने अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। उनकी रणभेरी ने सम्पूर्ण बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्र को जाग्रत किया। अंग्रेजों की बड़ी सेना के सामने भी वे कभी पीछे नहीं हटीं और युद्धभूमि में अपनी वीरता का परिचय दिया।
20 मार्च 1858 को जब अंग्रेजी सेना ने उन्हें घेर लिया, तब माँ रानी अवंतीबाई ने पराधीन होकर जीवित रहने की अपेक्षा स्वाभिमान और मातृभूमि की रक्षा को श्रेष्ठ माना। उन्होंने अपनी तलवार से आत्मबलिदान कर दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गईं। उनका बलिदान स्वतंत्रता की ज्योति बनकर आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरणा देता रहा। वे भारतीय नारी-शक्ति और स्वतंत्रता-समर्पण का अद्वितीय उदाहरण हैं।
माँ रानी अवंतीबाई का जीवन हमें सिखाता है कि स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष ही सच्चा राष्ट्रधर्म है।
वेदांतियों, अपने जीवन में साहस, बलिदान और मातृभूमि-भक्ति को अपनाओ—जैसे माँ रानी अवंतीबाई ने अपनाया।
याद रखो: “जिस नारी ने अपने प्राण राष्ट्र की स्वतंत्रता हेतु अर्पित किए, उसका नाम युगों तक अमर रहता है।”
चलो, उनके शौर्य और बलिदान से प्रेरणा लेकर हम भी भारत माता की स्वतंत्रता, संस्कृति और गौरव की रक्षा में सदैव तत्पर रहें।