माँ रानी चेनम्मा (1778 – 21 फरवरी 1829) कर्नाटक की वीरांगना और कित्तूर साम्राज्य की महारानी थीं। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम नायिकाओं में गिनी जाती हैं। बाल्यकाल से ही वे घुड़सवारी, शस्त्र-विद्या और युद्धकला में निपुण थीं। साहस, आत्मसम्मान और मातृभूमि के प्रति अटूट निष्ठा उनकी पहचान रही। अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण नीतियों के विरुद्ध वे विद्रोह का बिगुल बजाने वाली पहली महिला शासिका बनीं।
पति मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद माँ रानी चेनम्मा ने कित्तूर राज्य की बागडोर संभाली। अंग्रेजों ने “लैप्स पॉलिसी” के तहत राज्य हड़पने का षड्यंत्र रचा। लेकिन रानी ने दृढ़ स्वर में इसे अस्वीकार कर दिया और शस्त्र उठाने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी सेना संग युद्ध की तैयारी की और मातृभूमि की रक्षा हेतु प्राणों की बाजी लगा दी।
1824 ई. में माँ रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों से ऐतिहासिक युद्ध लड़ा। उन्होंने अपनी वीरता, रणनीति और नेतृत्व से अंग्रेजी सेना को पराजित किया और अनेक सैनिकों को बंदी बना लिया। यद्यपि आगे चलकर अंग्रेजों ने धोखे और छल से उन्हें कैद कर लिया, लेकिन उनके साहस और आत्मबल ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। उनकी वीरता की गाथा आज भी कर्नाटक की धरती पर गूँजती है।
माँ रानी चेनम्मा केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि मातृभूमि की अस्मिता की सशक्त प्रहरी थीं। वे भारतीय स्त्री-शक्ति की उस अदम्य धारा का प्रतीक हैं, जिसने अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने का साहस दिखाया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा शासक वही है जो प्रजा के अधिकार और राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए जीता और मरता है। उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता की पहली मशाल के रूप में अमर है।
माँ रानी चेनम्मा की शौर्यगाथा हमें सिखाती है कि अन्याय का प्रतिकार ही सच्चा धर्म है, और मातृभूमि की रक्षा ही सर्वोच्च कर्तव्य। वेदांतियों, अपने जीवन में साहस, आत्मसम्मान और देशभक्ति को अपनाओ—जैसे माँ रानी चेनम्मा ने अपनाया। याद रखो: “स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी भी एक नारी के साहस से प्रज्वलित हुई थी।” चलो, उनके अदम्य साहस और बलिदान से प्रेरित होकर हम भी राष्ट्र-धर्म और न्याय की रक्षा में सदैव तत्पर रहें।