माँ महारानी पद्मिनी (13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध) मेवाड़ (चित्तौड़) की रानी थीं, जो अपनी अद्भुत सौंदर्य, असीम साहस और आत्मसम्मान के लिए जानी जाती हैं। वे केवल रूपवती ही नहीं, बल्कि नारी-शक्ति और मातृभूमि की मर्यादा की अमर प्रतीक मानी जाती हैं। उनका जीवन इतिहास में बलिदान, स्वाभिमान और देशभक्ति का उज्ज्वल उदाहरण है।
माँ महारानी पद्मिनी मेवाड़ के राणा रतनसिंह की पत्नी थीं। उनके साहस और बुद्धिमत्ता ने चित्तौड़गढ़ को एक मज़बूत किला और स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। उनके नेतृत्व में मेवाड़ की रानियों और महिलाओं ने सदैव धर्म और मर्यादा की रक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया।
1303 ई. में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने महारानी पद्मिनी को पाने की महत्वाकांक्षा से चित्तौड़ पर आक्रमण किया। लंबे घेराव और युद्ध के बाद जब चित्तौड़गढ़ पर संकट गहराने लगा, तब महारानी पद्मिनी ने स्त्री-शक्ति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने सैकड़ों वीरांगनाओं के साथ जौहर की अग्नि में प्रवेश किया और मातृभूमि तथा नारी-सम्मान की रक्षा करते हुए अमर हो गईं।
माँ महारानी पद्मिनी केवल रूप और सौंदर्य की प्रतीक नहीं थीं, बल्कि उनका जीवन बलिदान और स्वाभिमान की गाथा है। उन्होंने संसार को यह संदेश दिया कि नारी किसी की वस्तु नहीं, बल्कि सम्मान और मर्यादा की ज्योति है, जिसके लिए वह प्राण भी न्यौछावर कर सकती है। उनका जौहर इतिहास में स्त्री-शक्ति और आत्मसम्मान का अमर अध्याय बन गया।
माँ महारानी पद्मिनी की शौर्यगाथा हमें यह सिखाती है कि सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा जीवन से भी अधिक महान है। वेदांतियों, याद रखो: “बलिदान ही वह ज्योति है, जो राष्ट्र, धर्म और संस्कृति को अमर बनाती है।” चलो, उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर हम भी आत्मसम्मान और मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लें।