माँ नीरा आर्य एक महान स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिनका नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए, लेकिन अफसोस, मुख्यधारा के इतिहास में उनकी वीरता को उतनी जगह नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी। वह न केवल एक क्रांतिकारी थीं बल्कि एक समर्पित देशभक्त भी थीं, जिन्होंने अंग्रेज़ों की अमानवीय यातनाओं को सहते हुए भी अपनी जुबान नहीं खोली और देश के गुप्त रहस्यों की रक्षा की।
माँ नीरा आर्य का जन्म उत्तर प्रदेश के एक संपन्न परिवार में हुआ था। बचपन से ही वह तेज-तर्रार, निर्भीक और राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत थीं। जब पूरा देश अंग्रेज़ों की दासता में जकड़ा हुआ था, तब माँ नीरा आर्य जैसे युवाओं ने आज़ादी की अलख जगाई। उन्होंने क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ काम करना शुरू किया।
माँ नीरा आर्य का मुख्य कार्य ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ खुफिया जानकारी इकट्ठा करना और उसे क्रांतिकारी साथियों तक पहुँचाना था।
वह ब्रिटिश अधिकारियों की गतिविधियों की निगरानी करतीं और उन सूचनाओं को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाले
आज़ाद हिंद फौज (INA) तक पहुँचाती थीं।
उनका जासूसी नेटवर्क इतना कुशल था कि अंग्रेज़ उन्हें पकड़ नहीं पा रहे थे।
लेकिन एक दिन उनकी गतिविधियों की भनक ब्रिटिश अधिकारियों को लग गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी के बाद माँ नीरा आर्य को पूछताछ के लिए अंधेरी कोठरी में कैद किया गया। उनसे नेताजी और INA के गुप्त ठिकानों की जानकारी माँगी गई,
लेकिन माँ नीरा आर्य ने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
जब वे ज़बानी तौर पर कुछ नहीं उगलवा सके, तो उन्होंने शारीरिक यातनाएँ देनी शुरू कर दीं।
उनके शरीर पर गर्म सलाखें दागी गईं, भूखा रखा गया, और अंततः अंग्रेज़ों ने अमानवीय क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं—उनके स्तनों को काट दिया गया।
यह पीड़ा कोई साधारण इंसान सह नहीं सकता, लेकिन माँ नीरा आर्य ने न कभी चीख निकाली, न अंग्रेज़ों के सामने झुकीं।
उन्होंने हर यातना को राष्ट्र के नाम स्वीकार किया। उनका शरीर बुरी तरह घायल था, लेकिन उनकी आत्मा अडिग थी।
माँ नीरा आर्य की वीरता की मिसाल बहुत कम मिलती है। उन्होंने अंत तक अपना राज़ नहीं खोला और भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को बचा लिया।
इस घोर अमानवीयता के बावजूद वह न केवल जीवित रहीं बल्कि आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय भी बनी रहीं।
उनकी कहानी नारी शक्ति, त्याग, बलिदान और राष्ट्र के प्रति समर्पण की प्रेरणादायक गाथा है।
माँ नीरा आर्य जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास की मुख्यधारा में जगह नहीं मिल सकी। उनके बलिदान को आधिकारिक इतिहास में बहुत कम दर्ज किया गया है। लेकिन आज के युग में हमें उनके बलिदान को पुनः सामने लाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देनी चाहिए।
देशभक्ति किसी सीमा, जाति या लिंग की मोहताज नहीं होती।
अगर हृदय में सच्चा समर्पण हो, तो सबसे बड़ी यातनाएँ भी झुका नहीं सकतीं।
हमें अपने इतिहास के उन गुमनाम नायकों को याद रखना चाहिए, जिन्होंने अपनी जान देकर हमें आज़ादी दिलाई।
✨ "हे भारत माता की वीर पुत्री माँ नीरा आर्य, आपके साहस, तप और बलिदान को शत्-शत् नमन।"
आपका नाम भले ही इतिहास की किताबों में दबा दिया गया हो, लेकिन सनातनी वेदान्तियों के दिलों में आपका गौरव सदा अमर रहेगा। ✨