राजा नाहर सिंह (1821 – 9 जनवरी 1858) 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धा और बल्लभगढ़ (वर्तमान हरियाणा) के जाट राजा थे। वे स्वतंत्रता के लिए प्राण न्योछावर करने वाले उन अमर शहीदों में शामिल हैं, जिनकी गाथा आज भी लोगों के हृदय को प्रेरित करती है।
राजा नाहर सिंह का जन्म 1821 में बल्लभगढ़ के शाही परिवार में हुआ। वे जाट समुदाय से थे और अपने पराक्रम, न्यायप्रियता तथा जनता के प्रति दायित्वबोध के कारण सबके प्रिय थे। युवावस्था से ही उनमें स्वराज्य और स्वतंत्रता की भावना प्रबल थी।
जब 1857 का विद्रोह फैला, तब राजा नाहर सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध खुला विद्रोह किया। उन्होंने दिल्ली में बहादुर शाह ज़फर का समर्थन किया और अन्य राजाओं व क्रांतिकारियों को संगठित कर स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया। उनके नेतृत्व में बल्लभगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी।
राजा नाहर सिंह ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजों को कड़ा संघर्ष दिया। उन्होंने बहादुरी से लड़ते हुए जनता में स्वतंत्रता की अलख जगाई। उनकी वीरता से अंग्रेजों में भय फैल गया, क्योंकि बल्लभगढ़ विद्रोह का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका था।
अंग्रेजों ने छल और विश्वासघात से राजा नाहर सिंह को गिरफ्तार किया। मुकदमे में उन्हें दोषी ठहराकर 9 जनवरी 1858 को दिल्ली के चाँदनी चौक पर फांसी पर चढ़ा दिया गया। उन्होंने हँसते-हँसते मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
राजा नाहर सिंह की गाथा हमें यह सिखाती है कि स्वाधीनता के लिए संघर्ष में विश्वासघात और कठिनाइयाँ आती हैं,
परंतु सच्चा देशभक्त कभी हार नहीं मानता।
वे केवल बल्लभगढ़ के शासक नहीं थे, बल्कि स्वतंत्रता के अमर सेनानी थे।
उनका बलिदान भारतीय इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
✨ "देश के लिए जीवन अर्पण करना ही सच्चा राजधर्म है – यही राजा नाहर सिंह का अमर संदेश है।" ✨
यह संदेश हर वेदांती के हृदय में सदैव जीवित रहना चाहिए।