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भारत पुत्र: छत्रपति संभाजी महाराज

छत्रपति संभाजी महाराज

छत्रपति संभाजी महाराज (14 मई 1657 – 11 मार्च 1689) मराठा साम्राज्य के द्वितीय छत्रपति और छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे। वे बाल्यकाल से ही अत्यंत साहसी, विद्वान और युद्धकला में निपुण थे। केवल 9 वर्ष की आयु में उन्होंने संस्कृत, मराठी, हिंदी, फारसी और अरबी जैसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

वीरता और युद्धकला

महाराज संभाजी ने अपने जीवनकाल में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब, सिद्धी, पुर्तग़ाली और अंग्रेज़ों के विरुद्ध लगातार युद्ध लड़े। वे अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के धनी थे। औरंगज़ेब की लाख कोशिशों के बावजूद मराठा साम्राज्य झुका नहीं। महाराज ने 120 से अधिक युद्धों में हिस्सा लिया और लगभग हर बार विजयी हुए।

कैद और संघर्ष

सन् 1689 में औरंगज़ेब की सेना ने गद्दार गनो जी शिर्के और मुगल सिपाहियों की सहायता से संभाजी महाराज को संगमेश्वर (महाराष्ट्र) में पकड़ लिया। उन्हें औरंगज़ेब के दरबार में लाया गया, जहाँ उन पर इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया गया। किंतु संभाजी महाराज ने अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपने गौरव का त्याग करने से इंकार कर दिया।

अत्याचार और बलिदान

इसके बाद औरंगज़ेब ने उन्हें भयंकर यातनाएँ दीं। उनकी आँखें फोड़ दी गईं, नाखून उखाड़े गए, शरीर को लोहे से काटा गया, जीभ निकाली गई और अंततः 11 मार्च 1689 को बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई। लेकिन संभाजी महाराज ने अंतिम सांस तक हिंदवी स्वराज्य और धर्म की रक्षा की।

महानता और विरासत

"छत्रपति संभाजी महाराज की शौर्यगाथा केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि हर भारतवासी की धड़कन है। वे सच्चे अर्थों में "भारत-पुत्र" और "धर्मवीर" थे, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर धर्म, स्वराज्य और मातृभूमि की रक्षा की। हे वेदांतियों, स्मरण रखो कि उनका बलिदान केवल बीते कल की गाथा नहीं, बल्कि आज भी हमारे लिए प्रेरणा का शंखनाद है। संभाजी महाराज हमें सिखाते हैं कि सच्चा वीर वह है जो कठिनाइयों से नहीं डरता, अत्याचार के सामने नहीं झुकता और अपने कर्तव्य पथ से कभी विमुख नहीं होता। आओ, उनके बलिदान से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में धर्म, साहस और निष्ठा को आधार बनाएं। याद रखो— "धर्म की रक्षा में दिया गया बलिदान ही अमरत्व का मार्ग है, और राष्ट्र की सेवा ही जीवन का सच्चा उद्देश्य।"
🚩 जय धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज! 🚩