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भारत पुत्र: मास्टरदा सूर्य

मास्टरदा सूर्य

परिचय

मास्टरदा सूर्य सेन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी और चट्टगाँव शस्त्रागार विद्रोह (1930) के प्रमुख नायक थे। वे एक शिक्षक होते हुए भी युवाओं में राष्ट्रप्रेम और क्रांतिकारी विचार भरने का कार्य करते थे। उनका नेतृत्व और बलिदान उन्हें इतिहास में अमर कर गया।

कौन थे सूर्य सेन?

सूर्य सेन का जन्म 22 मार्च 1894 को चट्टगाँव (अब बांग्लादेश) के नोआखली जिले के राऊजान गाँव में हुआ था। वे साधारण किसान परिवार से थे। पढ़ाई में तेज होने के कारण वे शिक्षक बने और लोग उन्हें “मास्टरदा” कहकर बुलाने लगे। शिक्षक रहते हुए भी उनका हृदय देश की गुलामी सहन नहीं कर सका और वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

क्रांतिकारी जीवन

मास्टरदा ने युवाओं को संगठित कर “इंडियन रिपब्लिकन आर्मी – चट्टगाँव शाखा” की स्थापना की। उनका उद्देश्य था अंग्रेज़ों की हथियारों की सप्लाई को रोकना और युवाओं में स्वतंत्रता की ज्वाला जगाना। वे मानते थे कि अंग्रेजों को हराने के लिए केवल नारे नहीं बल्कि शस्त्र उठाना भी आवश्यक है।

चट्टगाँव शस्त्रागार विद्रोह

18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन ने अपने साथियों के साथ चट्टगाँव शस्त्रागार पर धावा बोला। इसमें प्रीतिलता वाडेदार, आनंद गुप्ता, गणेश घोष जैसे कई युवा क्रांतिकारी शामिल थे। इस हमले में अंग्रेज़ों की टेलीफोन लाइनें और हथियारों के भंडार नष्ट कर दिए गए। विद्रोह ने पूरे बंगाल ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी।

गिरफ्तारी और यातनाएँ

लंबे समय तक गुप्त रूप से अंग्रेजों से बचते रहे, लेकिन 1933 में उन्हें धोखे से पकड़ लिया गया। गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों ने उन्हें अमानवीय यातनाएँ दीं। उनके दाँत तोड़े गए, शरीर की हड्डियाँ तोड़ी गईं, यहाँ तक कि नाखून तक उखाड़ दिए गए। इसके बावजूद उन्होंने कोई रहस्य उजागर नहीं किया।

बलिदान

12 जनवरी 1934 को सूर्य सेन को फाँसी दे दी गई। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका शरीर क्रांतिकारियों को सौंपा जाए, लेकिन अंग्रेजों ने भय से उनका शव समुद्र में फेंक दिया। वे मात्र 39 वर्ष की आयु में अमर बलिदानी बन गए।

इतिहास में स्थान

मास्टरदा सूर्य सेन का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर नायकों में लिया जाता है। उन्होंने युवाओं को सिखाया कि सच्चा देशप्रेम बलिदान माँगता है। उनका चट्टगाँव विद्रोह भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की धधकती ज्वाला बन गया। वे आज भी “युवाओं के प्रेरणास्त्रोत” और “बलिदान के प्रतीक” हैं।

हमें क्या सिखाते हैं?

सूर्य सेन हमें सिखाते हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान के लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए भी है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ निश्चय, साहस और संगठन शक्ति से बड़ा से बड़ा साम्राज्य भी हिलाया जा सकता है। वे आज के युवाओं को त्याग, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देते हैं।

✨ "मास्टरदा सूर्य सेन, तुम्हारे बलिदान और अमर साहस को शत्-शत् नमन।"

"तुम्हारी गाथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव अमर रहेगी।" हम सनातनी वेदांती आपकी शौर्यगाथा को दीपक की लौ की तरह जलाकर आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँगे। ✨