वीर कुंवर सिंह (1777 – 26 अप्रैल 1858) 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और शौर्य के प्रतीक थे। वे बिहार के जगदीशपुर (आरा) के राजपूत जमींदार और भोजपुर के महाराजा थे। 80 वर्ष की आयु में भी उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध अद्भुत साहस और पराक्रम दिखाकर यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता की ज्योति कभी मंद नहीं हो सकती।
कुंवर सिंह का जन्म 1777 में भोजपुर जिले के जगदीशपुर राजपरिवार में हुआ। वे पराक्रमी, दूरदर्शी और न्यायप्रिय शासक के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका स्वभाव सरल, धार्मिक और देशभक्तिपूर्ण था। युवावस्था से ही उनमें वीरता और युद्धकला के गुण स्पष्ट दिखाई देते थे।
1857 के विद्रोह की ज्वाला जब सम्पूर्ण भारत में फैली, तब 80 वर्षीय कुंवर सिंह ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध तलवार उठाई। उन्होंने आरा, शाहाबाद, आज़मगढ़, बनारस और गाजीपुर में अंग्रेजों को कड़ा संघर्ष दिया। उनकी सेना ने कई बार अंग्रेजी फौज को पराजित किया और स्वतंत्रता की लौ को प्रज्वलित रखा।
युद्ध के दौरान गंगा नदी पार करते समय एक गोली कुंवर सिंह की बांह में लगी। ताकि जहर पूरे शरीर में न फैले, उन्होंने स्वयं अपनी घायल बांह को काटकर गंगा जी को अर्पित कर दिया। यह अद्भुत त्याग और पराक्रम का उदाहरण है, जो उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों की श्रेणी में सर्वोपरि स्थान देता है।
लगातार युद्ध और संघर्ष करते हुए भी कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के सामने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया। अंततः 26 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर में उन्होंने वीरगति प्राप्त की। उनकी मृत्यु के बाद भी अंग्रेज उन्हें भारत की स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा प्रतीक मानते रहे।
कुंवर सिंह की गाथा हमें यह सिखाती है कि उम्र, परिस्थितियाँ और कठिनाइयाँ देशभक्ति की राह में बाधा नहीं बन सकतीं।
वे केवल बिहार के नहीं, बल्कि पूरे भारत के अमर वीर सपूत थे।
उनका बलिदान आज भी हमें स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है।
✨ "स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई हर लड़ाई में कुंवर सिंह का साहस अमर दीपक बनकर जलता है।" ✨
यह संदेश हर वेदांती के हृदय में सदैव अंकित रहना चाहिए।