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भारत की महान वीरांगनायें

माँ रानी लक्ष्मीबाई

🚩माँ रानी लक्ष्मीबाई 🚩

विवरण: माँ रानी लक्ष्मीबाई, जिन्हें "झांसी की रानी" के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे महान और वीरांगनाओं में से एक थीं। उनका जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका (प्यार से "मन्नू") था। वे बचपन से ही साहसी, निर्भीक और युद्ध कौशल में निपुण थीं।

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🚩माँ रानी दुर्गावती 🚩

विवरण: माँ रानी दुर्गावती (1524 – 24 जून 1564) गोंडवाना की महान शासिका, अदम्य साहस और आत्मसम्मान की प्रतीक वीरांगना थीं। वे बाल्यकाल से ही घुड़सवारी, धनुर्विद्या और शस्त्र-विद्या में निपुण थीं। जनकल्याण, न्याय और धर्मपालन उनके शासन की पहचान थे।

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🚩माँ अहिल्याबाई होल्कर 🚩

विवरण:माँ अहिल्याबाई होल्कर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795) मालवा की लोकमाता, धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय शासिका थीं। वे करुणा, प्रशासन-कुशलता और अटूट आस्था की जीवंत प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। बाल्यकाल से ही वे अध्ययन-ध्यान, साधु-सेवा और लोक-कल्याण के संस्कारों से ओत-प्रोत रहीं। मल्हारराव एवं खंडेराव होल्कर के पश्चात उन्होंने दृढ़ निश्चय और धैर्य से शासन की बागडोर संभाली।

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🚩माँ रानी चेनम्मा 🚩

विवरण: माँ रानी चेनम्मा (1778 – 21 फरवरी 1829) कर्नाटक की वीरांगना और कित्तूर साम्राज्य की महारानी थीं। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम नायिकाओं में गिनी जाती हैं। बाल्यकाल से ही वे घुड़सवारी, शस्त्र-विद्या और युद्धकला में निपुण थीं। साहस, आत्मसम्मान और मातृभूमि के प्रति अटूट निष्ठा उनकी पहचान रही। अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण नीतियों के विरुद्ध वे विद्रोह का बिगुल बजाने वाली पहली महिला शासिका बनीं।

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🚩माँ रानी अवंतीबाई 🚩

विवरण: माँ रानी अवंतीबाई लोधी (1831 – 20 मार्च 1858) मध्यप्रदेश के रामगढ़ राज्य की वीरांगना थीं। वे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रखर नायिका और मातृभूमि की रक्षा हेतु आत्मबलिदान करने वाली अमर वीरांगना के रूप में जानी जाती हैं। बचपन से ही वे तेजस्वी, साहसी और दृढ़ संकल्पवान थीं। पति राजा विक्रमादित्य लोधी की मृत्यु के बाद उन्होंने राज्य की बागडोर संभाली। मातृभूमि के प्रति उनकी निष्ठा और आत्मसम्मान उन्हें अन्याय और पराधीनता के विरुद्ध खड़ा होने के लिए प्रेरित करता रहा।

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🚩माँ रानी कर्णावती 🚩

विवरण: माँ रानी कर्णावती (चित्तौड़, 16वीं शताब्दी) मेवाड़ की वीरांगना और महाराणा सांगा की रानी थीं। वे संकट के समय धैर्य, दूरदर्शिता और स्वाभिमान की प्रतीक मानी जाती हैं। महाराणा सांगा के पश्चात जब मेवाड़ पर बाहरी आक्रमणों का संकट बढ़ा, तब माँ माँ रानी कर्णावती ने चित्तौड़गढ़ के संरक्षण की जिम्मेदारी संभाली और प्रजा की रक्षा का संकल्प लिया।

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🚩माँ महारानी नायकी देवी 🚩

विवरण: माँ महारानी नायकी देवी (12वीं शताब्दी) गुजरात की सोलंकी वंश की वीरांगना थीं, जिन्होंने अदम्य साहस और रणकौशल से मोहम्मद घोरी जैसे आक्रांता को पराजित किया। वे भारत की नारी-शक्ति और स्वराज्य की रक्षा की अमर प्रतीक मानी जाती हैं। बाल्यकाल से ही वे घुड़सवारी, शस्त्र-विद्या और राजनीति में निपुण थीं।

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🚩माँ महारानी पद्मावती (रानी पद्मिनी) 🚩

विवरण: माँ महारानी पद्मिनी (13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध) मेवाड़ (चित्तौड़) की रानी थीं, जो अपनी अद्भुत सौंदर्य, असीम साहस और आत्मसम्मान के लिए जानी जाती हैं। वे केवल रूपवती ही नहीं, बल्कि नारी-शक्ति और मातृभूमि की मर्यादा की अमर प्रतीक मानी जाती हैं। उनका जीवन इतिहास में बलिदान, स्वाभिमान और देशभक्ति का उज्ज्वल उदाहरण है।

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🚩माँ झलकारी बाई 🚩

विवरण: वीरांगना माँ झलकारी बाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अनुपम शूरवीर महिला थीं। उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की सेना में रहते हुए अपनी असाधारण वीरता, बुद्धिमानी और बलिदान से अंग्रेज़ों को मात दी। उनकी गाथा नारी शक्ति, देशभक्ति और साहस की जीवंत मिसाल है।

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🚩माँ रानी हाड़ी🚩

विवरण: माँ रानी हाड़ी (16वीं शताब्दी) राजस्थान की महान वीरांगना थीं, जिन्होंने चित्तौड़ की आन-बान और शान की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। वे चित्तौड़ की महारानी माँ रानी नहीं थीं, बल्कि राणा रतन सिंह की विधवा और शौर्य, त्याग तथा कूटनीति की अद्भुत मिसाल थीं। उनकी वीरता और बलिदान ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।

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🚩 माँ किरण देवी राठौर 🚩

विवरण: माँ किरण देवी राठौर (16वीं शताब्दी) राजस्थान की अद्वितीय वीरांगना और स्वाभिमान की प्रतीक थीं। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की उस परंपरा का विरोध किया जिसमें नवरोज़ के अवसर पर राजपूत घरानों की स्त्रियों को दरबार में उपस्थित होकर अपने आभूषण और सौंदर्य का प्रदर्शन करना पड़ता था। अपनी दृढ़ता और साहस से उन्होंने अकबर को विवश कर दिया कि वह यह परंपरा सदैव के लिए बंद करे। यह घटना राजस्थान के इतिहास में नारी गरिमा और मर्यादा की रक्षा का अद्वितीय उदाहरण है।

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🚩 माँ ऊदा देवी पासी 🚩

विवरण: माँ ऊदा देवी पासी (†1857) भारत की स्वतंत्रता संग्राम की पहली दलित वीरांगनाओं में से एक थीं। वे लखनऊ के सिकंदर बाग युद्ध में अंग्रेज़ों के खिलाफ अदम्य साहस के साथ लड़ीं और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। उनका बलिदान यह प्रमाण है कि स्वतंत्रता की ज्वाला केवल राजाओं और रईसों तक सीमित नहीं थी, बल्कि समाज के हर वर्ग और विशेषकर दलित समाज ने भी भारत की आज़ादी के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया।

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🚩माँ दुर्गा भाभी 🚩

विवरण: माँ दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi, 1900 – 8 जनवरी 1999) भारत की स्वतंत्रता संग्राम की अदम्य नायिका थीं। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ छिपकर कार्य किया और अपनी साहसिक योजनाओं के माध्यम से क्रांतिकारियों को सुरक्षा और मार्गदर्शन दिया। वे विशेष रूप से भगत सिंह और उनके साथियों को बचाने और उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। उनकी निडरता और रणनीति उन्हें स्वतंत्रता संग्राम की अनमोल वीरांगना बनाती हैं।

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🚩माँ नीरा आर्य🚩

विवरण: माँ नीरा एक महान स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिनका नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए, लेकिन अफसोस, मुख्यधारा के इतिहास में इनकी वीरता को उतनी जगह नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी। वह न केवल एक क्रांतिकारी थीं बल्कि एक समर्पित देशभक्त भी थीं, जिन्होंने अंग्रेजों की अमानवीय यातनाओं को सहते हुए भी अपनी जुबान नहीं खोली और देश के गुप्त रहस्यों की रक्षा की।

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🚩माँ प्रीतिलता वाडेदार🚩

विवरण: माँ प्रीतिलता वाडेदार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक साहसी महिला क्रांतिकारी थीं। उन्होंने महज 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेज़ों के विरुद्ध शस्त्र उठाया और अपने प्राणों का बलिदान देकर इतिहास में अमर हो गईं। वे बंगाल की क्रांतिकारी संगठन “चट्टगाँव विद्रोह” से जुड़ी हुई थीं।